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पोर्न का बाजार और इसका प्रभाव

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भारतीय समाज में अश्लीलता सदियों से व्याप्त रही है। जिसकोअपने अपने समय में  भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। परंतु समाजशास्त्रियों तथा बुद्धजीवियों ने अश्लीलता को असभ्यता से जोड़कर देखा है। ज्यों-ज्यों सभ्यता का विकास हुआ त्यों-त्यों समाज ने अश्लीलता को नग्नता से जोड़ दिया। हालांकि सदियों से मौजूद नग्नता को अश्लीलता नहीं माना जाता था, क्योंकि देखने का नजरियां, उनका दृष्टिकोण कुछ अलग था।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अश्लीलता को नारी शरीर से जोड़ दिया है। यह अश्लीलता नारी शरीर से जुड़ा एक ऐसा पहलू है जिसमें लगातार पुरूष का दृष्टिकोण परिवर्तित होता रहता है। यह परिवर्तन अभी तक अपने से इतर सभी पर लागू होता था, परंतु अब भारतीय घर की चारदीवारी में भी प्रवेश कर चुका है। क्योंकि पुरूष की मानसिकता में जो बदलाव आया है उस बदलाव के कारण वो सभी को कामुक दृष्टि से निहारने लगा है। जिसका साथ वर्तमान परिदृश्य लगातार दे रहा है।

आज अश्लीलता दिन-प्रतिदिन अपनी चरम सीमा को लाघंते हुए बाजार तक पहुंच गया है। इस अश्लीलता को सभ्य समाज ने कभी भी मान्यता प्रदान नहीं की। परंतु वो ही समाज अब धीरे-धीरे उसका समर्थन करने लगा है। इसका मूल कारण कुछ भी हो सकता है, चाहे मजबूरी कहें या वक्त की मांग। समर्थन तो दे दिया है 

भारत में बंद कमरों में देखा जाने वाला पोर्न कितना बड़ा बाजार बन चुका है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक लैपटॉप और मोबाइल फोन के जरिए देखा जाने वाला पोर्न डिजिटल इंडस्ट्री के जरिए लोगों को अरबों की कमाई करवा देता है। फोर्ब्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पोर्न के जरिए सालाना 10 से 14 बिलियन डॉलर के वारे न्यारे हो जाते हैं। जो एक बड़ी बात है । देश का युवा दिशा हिन हो चूका है ।

सेक्स टॉय डीलर्स से लेकर कई अन्य ‘स्टार्स’ भी डेटिंग से लेकर पॉर्न साइट से संपर्क साधते हैं। इन  लोगों की नजर साइट के व्यूज और विजिटर्स पर भी रहती है। जिस साइट में ज्यादा ट्रैफिक दिखाई देता है उस साइट्स को विज्ञापनदाता अपनी फेवरेट लिस्ट में शामिल कर लेता है। जिस साइट का ट्रैफिक जितना ज्यादा होता है वही ज्यादा मुनाफे के साथ मार्केट का किंग बन जाता है।

पोर्न कामेच्छा को बढ़ाता है और कई दुष्प्रभावों के साथ अंतरंगता को बढ़ावा देता है। पोर्न देखने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। पोर्न फिल्में देखने के दौरान जहां मूड-बूस्टिंग हॉर्मोन का स्त्रावण बढ़ जाता है वहीं दिमाग पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है.। इंटरनेट की सुलभता के चलते कुछ भी ऐसा नहीं रह गया है जो आम आदमी की  पहुंच से बाहर हो. बड़ों की बात छोड़ दें तो आजकल के टीनएजर्स भी पोर्न फिल्में देखने के आदी हो जाते है । जो  की बहुत ही गलत बात है । 

पोर्न या एडल्ट फिल्में अपने दर्शकों यानी टीनएजर्स, महिलाओं और पुरुषों के लिए सेक्सुअल फैंटेसीज को एक्सप्लोर करने का एक माध्यम होती हैं 

पर अगर कोई वयक्ति  बहुत अधिक पोर्न फिल्में देखता है तो उसे अचानक खुशी का अनुभव होना बंद हो जाएगा. 2014 में आई एक स्टडी में कहा गया था कि रेग्युलर पोर्न देखने  वालों में समय के साथ सेक्स और अंतरंग संबंधों को लेकर जल्दी ही  विरक्त‍ि आ जाती है. । 

2011 में आई एकऔर अधययन  में कहा गया कि रोजाना पोर्न देखने वालों में सेंसेशन नहीं रह जाती है. स्टडी ने अपनी अंतिम पंक्त‍ि में कहा कि पोर्न फिल्मों पोर्न फिल्मों की वजह से  नव युवकों को एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जो अपने वैवाहिक जीवन में अच्छे नहीं हैं। 

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