कामसूत्र

कामसूत्र के मुख्य तथ्य

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मनुष्य को श्रुति, स्मृति, अर्थविद्या आदि के अध्ययन के साथ कामशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। कामसूत्रकार ने सुझाव दिया है कि व्यक्ति को पहले विद्या पढ़नी चाहिए, फिर अर्थोपार्जन करना चाहिए। इसके बाद विवाह करके गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश कर नागरकवृत्त का आचरण करना चाहिए। विवाह से पूर्व किसी दूती या दूत की सहायता से किसी योग्य नायिका से परिचय प्राप्त कर प्रेम सम्बन्ध बढ़ाना चाहिए और फिर उसी से विवाह करना चाहिए। ऐसा करने पर गार्हस्थ्य जीवन, नागरिक जीवन सदैव सुखी और शान्त बना रहता है

अच्छी तरह से जीने की कला, प्रेम की प्रकृति, एक जीवन साथी की खोज, एक के प्रेम जीवन को बनाए रखना, और अन्य पहलुओं को मानव जीवन के आनन्द-उन्मुख संकायों से सम्बन्धित है।  

कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा लिखा गया भारत का एक बहुत  प्राचीनतम  ग्रंथ है। कामसूत्र को उसके विभिन्न आसनों के लिए ही जाना जाता है। कामसूत्र के बारे में यह कहा जाता है कि यह सिर्फ सेक्स गाइड ही नहीं है। कामसूत्र न केवल सेक्‍स संबंधों के बारे में बहुत ही व्‍यावहारिक व उचित जानकारी देता है, बल्कि यह दाम्‍पत्‍य जीवन के समस्‍त पहलुओं पर भी विस्‍तृत और गहन जानकारी प्रदान करता है। 

कामसूत्र 7 भागों में विभक्त है जिसमें से यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग ‘संप्रयोगिकम्’ एक है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ का केवल 20 प्रतिशत ही है जिसमें 69 यौन आसनों का वर्णन है। इस ग्रन्थ का अधिकांश भाग काम के दर्शन के बारे में है, काम की उत्पत्ति कैसे होती है, कामेच्छा कैसे जागृत रहती है, काम क्यों और कैसे अच्छा या बुरा हो सकता है। 

 कामसूत्र सनातम धर्म पर आधारित एक पुस्तक है । जिसमें सेक्स जीवन के अलावा भी कई चीजों का उल्लेख है। काम का अर्थ होता है कामना यानी इच्छा। जीवन के दूसरे तीन लक्ष्य है धर्म , अर्थ, और मोक्ष। कामसूत्र में सेक्सुअल इंटरकोर्स और सेक्स पोजीशन को लेकर काफी कम बाते हैं ।  इसके लगभग 20 फीसदी आलेख  में सेक्स से संबंधित आसनों पर चर्चा की गई है। इसकी  रचना 1500 से 2000 वर्ष पुरानी है, लेकिन मौजूदा दौर में भी इसकी उपयोगिता में कोई कमी नहीं आई है । 

कामसूत्र को महर्षि ने  सात भागों को 36 अध्‍यायों में बांटा गया है। इनमें कुल 1250 श्लोक हैं। कामसूत्र के 7 भाग इस प्रकार हैं, जिसमें पूरे ग्रंथ का समावेश है। सात भाग में से एक भाग में प्रेम कला को लगभग  8 श्रेणियों में बांटा गया है जिनमें 8-8 भेद हैं। कामसूत्र में सेक्स के लिए 64 पोजीशंस का वर्णन  कीया  गया  है। कामसूत्र में सेक्‍सुअल समस्‍याओं को दूर करने और उनसे बचने के उपायों के विषय में भी वर्णन है।  

काम’ एक विस्तृत अवधारणा है, न केवल यौन-आनन्द। काम के अन्तर्गत सभी इन्द्रियों और भावनाओं से अनुभव किया जाने वाला आनन्द निहित है। गुलाब का इत्र, अच्छी तरह से बनाया गया खाना, त्वचा पर रेशम का स्पर्श, संगीत, किसी महान गायक की वाणी, वसन्त का आनन्द – सभी काम के अन्तर्गत आते हैं। वात्स्यायन का उद्देश्य स्त्री और पुरुष के बीच के ‘सम्पूर्ण’ सम्बन्ध की व्याख्या करना था। ऐसा करते हुए वे हमारे सामने गुप्तकाल की दैनन्दिन जीवन के मन्त्रमुग्ध करने वाले प्रसंग, संस्कृति एवं सभ्यता का दर्शन कराते हैं। कामसूत्र के सात भागों में से केवल एक में, और उसके भी दस अध्यायों में से केवल एक अध्याय में, यौन-सम्बन्ध बनाने से सम्बन्धित वर्णन  है।

सम्प्रयोग’ को अर्थ सम्भोग होता है। इस अधिकरण में स्त्री-पुरुष के सम्भोग विषय की ही व्याख्या विभिन्न रूप से की गई है, इसलिए इसका नाम ‘साम्प्रयोगिक’ रखा गया है। इस अधिकरण में दस अध्याय और सत्रह प्रकरण हैं। कामसूत्रकार ने बताया है कि पुरुष अर्थ, धर्म और काम इन तीनों वर्गों को प्राप्त करने के लिए स्त्री को अवश्य प्राप्त करे किन्तु जब तक सम्भोग कला का सम्यक् ज्ञान नहीं होता है तब तक त्रिवर्ग की प्राप्ति समुचित रूप से नहीं हो सकती है और न आनन्द का उपभोग ही किया जा सकता 

पुस्तक के तीसरे अधिकरण का नाम कन्यासम्प्रयुक्तक है । इसमें बताया गया है कि नायक को कैसी कन्या से विवाह करना चाहिए। उससे प्रथम किस प्रकार परिचय प्राप्त कर प्रेम-सम्बन्ध स्थापित किया जाए? किन उपायों से उसे आकृष्ट कर अपनी विश्वासपात्री प्रेमिका बनाया जाए और फिर उससे विवाह किया जाए। इस अधिकरण में पाँच अध्याय और नौ प्रकरण हैं। उल्लिखित नौ प्रकरणों को सुखी दाम्पत्य जीवन की कुञ्जी ही समझना चाहिए। कामसूत्रकार विवाह को धार्मिक बन्धन मानते हुए दो हृदयों का मिलन स्वीकार करते हैं। पहले दो हृदय परस्पर प्रेम और विश्वास प्राप्त कर एकाकार हो जाएँ तब विवाह बन्धन में बँधना चाहिए, यही इस अधिकरण का सारांश है। यह अधिकरण सभी प्रकार की सामाजिक, धार्मिक मर्यादाओं के अन्तर्गत रहते हुए व्यक्ति की स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। 

चतुर्थ अधिकरण का नाम भार्याधिकारिक है। पाँचवें अधिकरण का नाम पारदारिक है । छठे अधिकरण का नाम वैशिक है। सातवें अधिकरण को नाम औपनिषदिक है।  इसमें दो अध्याय और छह प्रकरण हैं। इस अधिकरण में, नायक-नायिका एक दूसरे को मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, औषधि आदि प्रयोगों से किस प्रकार वशीभूत करें, नष्टरोग को पुनः किस प्रकार उत्पन्न किया जाए, रूप-लावण्य को किस प्रकार बढ़ाया जाए, तथा बाजीकरण प्रयोग आदि मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। औपनिषदिक का अर्थ ‘टोटका’ है। 

कामसूत्र                                         सम्भोग                                    महर्षि वात्स्यायन

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